कंडाली की कापिली :- कुमांऊ व गढ़वाल में कंडाली को काल्डी आला व सिसौण आदि कई नामों से जाना जाता है | हिंदी में इसे बिच्छू घास या बिच्छू बूटी कहते हैं | बिच्छू घास नाम सुनकर आपके रौंगटे खड़े हो जायेंगे और सचमुच शरीर के किसी अंग को यदि कंडाली चू गयी तो अगले दो दिन तक उस जगह पर झनझनाहट रहेगी , लेकिन धीरे-धीरे स्वत: खत्म भी हो जाती है | इसी कंडाली का साग या कापिली यदि आप एक बार खा लें तो ज़िन्दगी भर इसका स्वाद नहीं भूल सकते | आपको लगेगा की दुनिया में इससे स्वादिष्ट दूसरा कोए हरा साग नहीं है | इसकी कोंपलों का साग मुख्यतः सर्दियों में ही खाया जाता है |
कापिली बनाने के लिए कंडाली की नई मुलायम कोपलें उपयुक्त होती है लेकिन मुलायम कोपलें तभी होंगी जब कंडाली के पौधे को हर साल काटते रहेंगे , वरना पुराना पौधा खाने लायक नहीं होता | कोपलें काटकर लाने के लिए चिमटा जरूरी हथियार है | साथ में दो मुहँ वाली डंडी और तेज दरांती | डंडी से कंडाली को दबायें और चिमटे से पकड़ें और फटा -फट दरांती से काटकर टोकरी में रखें | परन्तु सावधानी रखें कंडाली शरीर को न लगे | इन हरी कोपलों को घर लाकर अच्छी तरह झाड़कर साफ़ कर लोहे की कढ़ाही में कम पानी में अच्छी तरह ढक्कन लगाकर पकाएं | साथ में थोडा अमिल्डा की हरी पतियाँ भी पकाएं | अमिल्डा के पत्ते हल्के खट्टे होते हैं , यह स्वाद बढ़ाते हैं और संतुलन भी बनाते हैं| कई स्थानों में पकाने से पूर्व कंडाली की कोपलों को आग की तेज लौ के सामने के लिए दिखाते हैं तो उसके सुई नुमा तेज रोयें बारूद की तरह जल जाते हैं | ऐसा करने से कंडाली की कापिली ज्यादा स्वादिष्ट होती हैं | लेकिन यदि ऐसा भी न करें तब भी कंटीले रोओं का असर पकने से खत्म हो जाता है |
इस उबली कंडाली को सिल-बट्टे से पीसें या करछी से अच्छी तरह घोटें और थाली में अलग निकालकर उसमें पानी मिलाकर घोलें | इस घोल में थोडा सा आटा /बेसन या चावल का आलण (चावल की पिट्ठी ) भी अच्छी तरह मिलायें | स्व्दानुसार नमक , मिर्च डालें | थोडा सा धनिया पाउडर दाल सकते हैं | टमाटर या मसाला डालने की जरुरत नहीं है | तेल गर्म होने पर पहले उसमें जरुरत अनुसार लाल मिर्च भूनना न भूलें , मिर्च भुन कर अलग निकाल दें | अब तडके के लिए उसमें जख्या, चोरा, लहसून या हिंग डालें , और फटाफट कंडाली का घोल उसमें दाल दें , कंडाली की खुशबू से वातावरण मगक उठेगा | अब करछी से अच्छी तरह हिलाते या घुमाते रहें ताकि कढ़ाही के टेल पर न जमे | पानी अंदाज का रखें कापिली न ज्यादा पतली हो न ज्यादा गाढ़ी | अच्छी तरह पकाएं कापिली तैयार है | परोसते समय घी से ज्यादा जायका आता है | और हाँ भूनी पहाड़ी करारी मिर्च भी न भूलें |
कापिली के साथ मजेदार लगती है - कापिली -झंगोरा , कापिली -भात और कापिली -मंडुवा की रोटी , यह जोरदार रैसिपी है |
कंडाली खनिज, विटामिन व औषधि का भण्डार :- कंडाली में लौह तत्व अत्यधिक होता है | खून की कमी पूरी करती है | इसके अलावा फोरमिक ऐसिड , एसटिल कोलाइट, विटामिन ए भी कंडाली में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | इसमें चंडी तत्व भी पाया जाता है | गैस नाशक है आसानी से हज्म होती है | कंडाली का खानपान पीलिया, पांडू, उदार रोग, खांसी, जुकाम, बलगम,गठिया रोग, चर्बी कम करने में सहायक है | स्त्री रोग , किडनी अनीमिया , साइटिका हाथ पाँव में मोच आने पर कंडाली रक्त संचारण का काम करती है | कंडाली कैंसर रोधी है, इसके बीजों से कैंसर की दवाई भी बन रही है | एलर्जी खत्म करने में यह रामबाण औषधि है | कंडाली की पतियों को सुखाकर हर्बल चाय तैयार होती है | कंडाली के डंठलों का इस्तेमाल नहाने के साबुन में होता है | छाल के रेशे की टोपी मानसिक संतुलन के लिए उपयोगी है | कंडाली को उबाल कर नमक मिर्च व मसाला मिलकर सूप के रूप में पी सकते हैं | कंडाली के मुलायम डंठल की बाहरी छाल निकालने के बाद डंठल से बच्चों व बड़ों के लिए एनिमा का काम लिया जा सकता है
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विजय जड़धारी
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